चितवन तुम्हारी
राज भरी लगती है
नैनों के कोणो की चपलता
काज भरी लगती है .
मूक संकेत के बेंत
मर्मस्थल पर लगते है
मुखर होकर भी संकेत
संकेत से ही लगते है
अनबन तुम्हारी
साज भरी लगती है
थिरकन तुम्हारी
आवाज भरी लगती है
साड़ी सरलता तुम्हारी
दिखावा है , ढोंग है
छलावा है ,भ्रम है
इसके पीछे की दुविधा
गाज भरी लगती है
चितवन तुम्हारी
राज भरी लगती है .......
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