तेरी छवि
बनाती कवि
कर देती तल्लीन
त्रिमुहानी तेरे तीर
तेरी कल-कल में
श्रुतिगत होती
कलरव नित नवीन
त्रिमुहानी .........
अस्तांचल को जाता सूरज
उगता अम्बर पर चाँद
तुम्हारे जल में दिखता
सायं आस पास
मधुरस घोलती सी
कुछ अस्फुट सा बोलती सी
मानो बजती बीन
त्रिमुहानी ............
मंद्माधुर हवा
दारुकता की दवा
तुम्हारा स्पर्श पाकर
हवा सब दुखों को लेती छीन
त्रिमुहानी ...........
तुम्हारे तट पर रहते
सुख-दुःख सहते
न होता मन कभी
तनिक भी दीन
त्रिमुहानी ..........................
ले चल मुझे भुलावा देकर...मेरे नाविक धीरे-धीरे...
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