Saturday, March 26, 2011

यादें

एक वह भी पल था 
दूसरा यह भी पल है 
                 न तब कल था
                 न अब कल है 

तब रात का अँधेरा था 
 अब अँधेरे का घेरा है 
                  कितनी सजीली रातें थी 
                  कैसी लजीली बातें थी 

अब तो बस उनकी यादें हैं 
जब भी फुहार पड़ती है 
                 जब भी अँधेरा घिरता है 
                 बिजली व्योम में चमकती है 
यादें बलात आ ही जाती हैं 
केवल - केवल सताती हैं .

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