मन के सर में नहाओ
कर दो सपूतों सा कुछ
अग-जग में जिससे
कायर कपूत न कहाओ .
अविराम साधना का जल
धो देगा संचित मल .
बन निर्मल रस धार
बरसाओ - सरसाओ .
रहो मस्त हरदम
चैन की वंशी बजाओ
विषय - रस में धरा क्या है
इस मरुस्थल में हरा क्या है
आवेशित मन को भान नहीं होता
भटके मन का सम्मान नहीं होता ,
जैसे कैसे इसे राह पर लाओ .