Tuesday, September 13, 2011

अग्रसोची सदा प्रसन्न रहता 
उसे कोई पछतावा होता  नहीं 
भ्रमजाल में जो कभी रहता नहीं 
धोखे खाकर कभी रोता नहीं 

सहना नहीं पड़ता उसे 
रियायत जो कभी करता नहीं 
सही -सही फैसला जो लेता है 
संताप उत्ताप कभी सहता नहीं 

पछतावा भूल की दवा है 
हवा किसको लगती नहीं 
चतुर सुजान तो वही है 
दुहराता भूल को कतई नहीं

जो होगया सो हो गया 
उससे चिपटना कैसा 
जिस पंक से छूट गए 
फिर उससे लिपटना कैसा 

ध्यान कभी भंग न हो 
ऐसा क्या हो सकता है 
कभी चैन ही न मिले 
कैसे वह सो सकता है ..............................


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